न्यूज़ बस्तर की आवाज़@ छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ियों का मुख्य त्योहार तीजा तिहार आज है। आपको पता है कि तीजा त्यौहार क्यों, कब और कैसे मनाया जाता है। अगर नहीं तो आज हम आपको बताते हैं कि तीजा पर्व का क्या महत्व है और इसे क्यों और कैसे मनाया जाता है। यह त्यौहार भादो माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। तृतीया होने के कारण तीजा कहते हैं।
छत्तीसगढ़ की आदि संस्कृति से वन्य जीवों में तीजा को तीजाघर के रूप में बनाया जाता है। यहां महादेव और बालीगौरा (गंगा माता) की मिट्टी की प्रतिमा की पूजा की जाती है और महादेव और बालीगौरा की कथा, गुरुमाएं (पुजारिन महिलाएं) धनकुल वाद्ययंत्र द्वारा बनाई गई हैं, ऐसा यंत्र जिसमें मटके के ऊपर सुपा और सुपा के ऊपर तीर के साथ बांस की झिरनी कड़ी (लकड़ी) होती है। ) से बाज़ार जाना है. तीजा जागर को बहुत सुंदर ढंग से लिखा है। इस कथा में महादेव और बाली गौरा का विवाह (गंगा माता), महादेव बाली गौरा को जटा में धारण करना, माता पार्वती द्वारा बाली गौरा का परीक्षण लेना और माता पार्वती द्वारा बाली गौरा को अपने प्रेम भाव से स्वीकार करना सुनाने को मिलता है। यह कथा रातभर चलती है।
शुभ उत्सव
हरतालिका तीज का आरंभ 17 सितंबर को सुबह 11 बजे 8 बजे होगा और इसका समापन 2 बजे करीब 12 बजे 39 मिनट पर होगा। उदया तिथि की मान्यता के अनुसार यह व्रत 18 सितंबर को रखा जाता है। हरतालिका तीज की पूजा सुबह 6 बजे से रात 8 बजे तक 24 मिनट पर होगी।
तीजा की शुरुआत
तीजा पर्व की शुरुआत कुरूभात से होती है जो बहुत ही बुरा होता है। इस पर्व में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि कौन सी माताएं स्थापित हैं। तीजा व्रत के एक दिन पहले माताएं एक दूसरे के घर दाल-भात और अन्य सब्जियों के साथ करेला की सब्जी जरूर खरीदती हैं जिसे करू भात कहा जाता है। इस व्रत वाली महिलाओं को कम से कम तीन बार घर पर खाना बनाना होता है। करेला चॉकलेट होते भी हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत होता है. करेले की तासीर वैध होती है जो उपवास के दौरान शरीर में पित्त नहीं बढ़ाती। साथ ही करेला खाने से प्यास कम लगती है जो उपवास के लिए फायदेमंद होता है।
पूजा कर रचनाएँ उपवास हैं
इस दिन महिलाएं सुबह-सुबह नदी और तालाबों में पर्यटक मुक्कास्नान करती हैं। मतलब इस वक्त महिलाएं स्नान और पूजा तक किसी से बात नहीं करतीं। नीम, जापानी, सरफोंक, स्क्रैच लटकना आदि से दातुन करते हैं। साबुन की जगह तिल्ली, यूक्रेन की खल्ली, डोरी खरी तिल्ली का प्रयोग किया जाता है। महुवा का तेल निकल जाने के बाद बलराम को खल्ली कहा जाता है। खल्ली, हल्दी और आँवले की बेचैन को पीसकर उबटन का प्रयोग किया जाता है। जो शरीर को कोमल और चमकदार दिखता है। काली मिट्टी से बाल धोती है। नहाने के बाद नदी की मिट्टी या तालाब के पास की मिट्टी को खोदकर डोडा में लाती है। इस कुसुमित मिट्टी से भगवान महादेव और माता गौरा की प्रतिमा का निर्माण कर फुलेरा में लिखी गई हैं। फुलेरा यानी फूलो से भगवान का मंदिरनुमा मंडप बनाया जाता है जिसे छत्तीसगढ़ी में फुलेरा कहा जाता है। भगवान का पूजन विभिन्न प्रकार की शैलियाँ जैसे ठेठरी, खुरमी, कतरा।
तीसरे दिन की पूजा कैसे करें
तीसरे दिन भगवान विष्णु को सुबह स्नान करने के बाद भाईयों, माता-पिता द्वारा उपहार दिए गए उद्यम सिंगार का जो समान दिया जाता है वह तीसरे दिन भगवान महादेव और माता गौरा की मिट्टी की मूर्ति की पूजा करते हैं। इसके बाद नदी और तालाबों में विसर्जन किया जाता है। विसर्जन करने के बाद सबसे पहले सूजी या सिंघाड़े या तीखुर का कटारा कुछ सीज़न में मांगा पानी पीकर अपना व्रत तोड़ती हैं। सभी बड़े उपहारों के आशीर्वाद हैं। आपके निमंत्रित परिवारजनों में तीजा का फलाहार करने में व्यंजन और भोजन शामिल होते हैं।