समूचे भारतवर्ष मे अपनी विशेष पहचान रखने वाले एकलौते बस्तर की आदिवासी संस्कृति और परंपराओं को बचाने व प्रोत्साहित करने एक अभियान नारायंणपुर , ओरछा, अंतागढ़ के चुने हुए कुछ 30 गांवों मे दिशा समाज सेवी संस्था द्वारा चलाया जा रहा है ।
कुछ ऐसे गांव जहां गोंडी बोली के साथ गोटूल मांदरी नृत्य गीत,तीज त्योहार ईत्यादि पूर्वजों के समय से चलते आया पर जैसे ही आधुनिकता का दौर आया नई पीढ़ी जाने-अनजाने इससे अपने को दुर करते चले गये ! इसके फलस्वरुप आदिवासियों की महाँन कला संस्कृति लुप्त होने की नौबत आ पडी़ है ।
जंगल विहीन शहरी समाज के लिए यह कड़वा सच है कि जहां आदिवासी बसते है वहीं जंगल शेष है बाकी सब विरांन सा दिखाई पड़ता है अर्थात आदिवासी और जंगल का गहरा नाता है ! ऐसे मे हमें मान लेने चाहिए कि, आदिवासी बचेंगे तो वन वनस्पति और जैवविविधता एवं धरती सुरक्षित रहेगी ! ऐसे ही गोटूल व्यवस्थाओं को संस्था की ओर से व प्रोत्साहित। किया जा रहा इस दौरान अब तक कुल 15 गोटूल गांव अंजरेल, आदपाल, कानागांव, कदेर, इकमेटा, हुरतराई, पल्लाकसा, कोहका, डुवाल, अड़ेगा बोरगांव, मुरहापदर, सावलीबरस, बैंहासालेभाट, नीलेगोंदी को पारम्परिक वाद्ययंत्र का वितरण कर समपन्न कर लिए है ।
आज दिनांक 20 मई 2025 बोरगांव नारायंणपुर मे । सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ युवक – युवतियों को आदिवासी कला संस्कृति बचाए रखने के लिए प्रेरित कर पारंपरिक वाद्ययंत्र व श्रृंगार सामग्री वितरण किया गया।